इराक-ईरान से लेकर सऊदी अरब में खलबली मच गई है। खलबली मचने का कारण यह है कि सऊदी अरब की राजधानी रियाद के दक्षिण-पश्चिमी इलाके में 8 हजार साल पुराने शहर के अवशेष मिले हैं। इन्ही अवशेषों में ठीक उसी तरह के मंदिर पाए गए हैं जैसे महाराष्ट्र के अजंता एलोरा और हिमाचल के मसरूर (कांगड़ा), आंध्रा की बाडाबार गुफा टेंपल, तमिलनाडु का वाराह मंदिर, और कर्नाटका के बादामी के रॉक कट टेंपल हैं। भारत में इस तरह के रॉक कट टेंपल कई और जगह पर हैं। कुछ स्थानों पर ये ईसा से 6 से 7 शताब्दि पुराने तक हैं। अब इसी तरह के मंदिर सऊदी अरब में मिलने से अरब-इस्लाम ही नहीं पूरी दुनिया के आर्कियोलॉजिस्ट आश्चर्यचकित हैं।
दुनिया भर के पुरातात्विक विद अब इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि क्या रियाद के दक्षिण-पश्चिम में अल फॉ की खुदाई में मिले रॉक कट टेंपल्स का भारत की पुरानी सभ्यता से कोई संबंध रहे हैं। क्यों कि अल फॉ के मंदिर के साथ वैसी ही यज्ञ वेदियां भी मिली हैं जैसे भारत के मंदिरों में होती हैं। वहां कुछ शिलालेख भी मिले हैं जिनसे पूजा-पाठ से संबंधित विवरण मिलता है। पुरातत्वविदों में एक शगल यह भी चल रही है कि काशी में आदिदेश्वर महादेव का शिवलिंग की पूजा का अधिकार के लिए भारत की अदालतों में भले ही मुकदमेबाजी चल रही हो लेकिन अलफॉ की धरती के नीचे मिले मंदिरों पर कब्जे के लिए भारत सरकार किसी तरह का दावा नहीं करेगी। हां, इतना जरूर है कि मुस्लिम कट्टपंथियों को इस नई खोज से आपत्ति जरूर हो सकती है। क्यों कि इस नई खोज से इतिहास के पन्नों पर लिखी इबारतों में संशोधन की संभावना जरूर है।
बहरहाल, सऊदी अरब के इस इलाके में मिले 8000 साल पुराने अवशेषों से पता चलता है कि कभी यहां पर देवी-देवताओँ की पूजा होती थी। रियाद के दक्षिण-पश्चिम इलाके के अल-फॉ की साइट पर हाई क्वालिटी की एरियल फोटोग्राफी, कंट्रोल प्वाइंट के साथ ड्रोन फुटेज, रिमोट सेंसिंग, लेजर सेंसिंग और कई अन्य सर्वे का इस्तेमाल किया गया।
इस साइट पर कई खोजों के साथ सबसे महत्वपूर्ण एक मंदिर है। यहां एक वेदी के कुछ हिस्सों के अवशेष मिले हैं। इससे स्पष्ट संकेत हैं कि यहां उस समय ऐसे लोग रहते थे जिनके जीवन में समारोहों, पूजा और अनुष्ठान महत्व रखता था। इस मंदिर का नाम रॉक-कट टेंपल है जो माउंट तुवाईक के किनारे स्थित है, जिसे अल-फ़ॉ के नाम से जाना जाता है।
हजारों साल पुराने इन अवशेषों का पता अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी से मिली है। यहां मंदिर के अलावा 2,807कब्रें मिली हैं लेकिन इनकी टाइमिंग में बहुत फर्क है। शोधकर्ताओं ने एक्सक्वेशन साइट को छह ग्रुप में रखा है। मैदानी इलाके भक्तिशिलालेखों को रखा गया है। इन शिलालेखों में जबल लाहक अभयारण्य एक शिलालेख है। जिससे जो अल-फ़ॉ के कहल देवता के बारे में जानकारी मिली है।
इस साइट पर सांस्कृतिक संपदा के अलावा एक सुनियोजित शहर का पता चला है। जिनके कोने पर चार टावर हैं। इस पुरातात्विक अध्ययन से दुनिया की सबसे शुष्क भूमि और कठोर रेगिस्तानी वातावरण में नहरों, पानी के कुंड और सैंकड़ों गड्डों सहित एक जटिल सिंचाई प्रणाली का खुलासा हुआ है। अल-फॉव पुरातात्विक क्षेत्र पिछले 40 वर्षों से पुरातात्विक अध्यन के फोकस में रहा है। इससे ज्यादा खास बात ये कि यहां मंदिर और मूर्तियों की पूजा का कल्चर था।