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पाकिस्तान-चीन की सेना को उल्टे पांव दौड़ाया, सरकार गिराई! कर्नल बैंसला के निधन पर यूं ही नहीं लोगों के आंखों में आंसू

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गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति के नेता रह कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला का आज सुबह निधन हो गया है। बैंसला कई दिनों से बीमार चल रहे थे।  यूपी से लेकर राजस्थान तक गुर्जर समुदाय के लाखों लोग आंखों में आंसू लिए अंतिम विदाई देने पहुंच रहे हैं। कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला का जन्म राजस्थान के करौली जिले के मुंडिया गांव में हुआ था। उनकी शुरूआती पढ़ाई गांव में ही हुई। 12वीं की बोर्ड परीक्षा पास करने के बाद बैंसला ने भरतपुर और जयपुर के महाराजा कॉलेज से उच्च शिक्षा हासिल की। इसके बाद वह प्रथम सर्वेश महुआ में अंग्रेजी के प्रफेसर बन गए। दो साल प्रफेसर की नौकरी करने के बाद बैंसला भारतीय सेना में भर्ती हो गए।

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उन्होंने 1962 के भारत-चीन और 1965 के भारत-पाकिस्तान का युद्ध लड़ा। किरोड़ी सिंह बैंसला पाकिस्तान में युद्धबंदी भी रहे। अपनी जाबांजी के कारण ही वह सिपाही से कर्नल के पद तक पहुंचे। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में बैंसला ने युद्ध के मैदान में पाकिस्तानी सैनिकों को छक्के छुड़ा दिए थे। सेना में उनके साथी उन्हें रॉक ऑफ जिब्राल्टर और इंडियन रैम्बो कहते थे। उनकी एक बेटी अखिल भारतीय सेवा में अधिकारी है, वहीं दो बेटे सेना में हैं, एक बेटा निजी कंपनी में कार्यरत है।1991 में भारतीय सेना से रिटायर हो गए। 2005 में उन्हें गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति का संयोजक बनाया गया।

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 गुजरों के एसटी में शामिल कराने के मांग को लेकर कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के नेतृत्व में साल 2008 में हुए गुर्जर आरक्षण में 70 लोगों की जान चली गई थी। किरोड़ी सिंह बैंसला के नेतृत्व में जारी आंदोलन के चलते राजस्थान सरकार को झुकना पड़ा। आखिरकार राजस्थान के गुर्जरों को विशेष पिछड़ा वर्ग का 5 फीसदी आरक्षण मिला। कर्नल किरोड़ी सिंह बैसला गुर्जर समाज मैं शिक्षा को लेकर जन जागरण का कार्य करते रहे। उन्होंने 'गुड हेल्थ, गुड एजुकेशन' का नारा देकर गांवो में अंग्रेजी शिक्षा को बढ़ावा देने पर जागृति पैदा करने का कार्य निरंतर रूप से करते रहे। आंदोलन के दौरान राजस्थान की वसुंधरा सरकार की काफी किरकिरी हुई और विधानसभा चुनाव में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था।